उत्तराखंड: शीतकाल के लिए बंद हुए बदरीनाथ धाम के कपाट! बदरी विशाल के जयकारों के गूंजा धाम

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बदरीनाथ धाम के कपाट आज शीतकाल के लिए बंद हो गये हैं। कपाट बंद होने के दिन 10 हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने बदरी विशाल के दर्शन किये। कपाट बंद होने के मौके पर बदरीनाथ मंदिर को फूलों से सजाया गया। सिंह द्वार परिसर में गढ़वाल स्कॉट के बैंड की भक्तिमय धुनों से संपूर्ण बदरीनाथ धाम गुंजायमान हुआ। धाम जय बदरीविशाल के उदघोष से गूंज उठा। बदरीनाथ के कपाट बंद होने के साथ ही इस वर्ष की चारधाम यात्रा का भी समापन हो गया है। कपाट बंद होने से पहले मुख्य पुजारी रावल ईश्वर प्रसाद नंबूदरी स्त्री वेश धारण कर माता लक्ष्मी की प्रतिमा को भगवान बदरी-विशाल के धाम के गर्भगृह में प्रतिष्ठापित किया। जिसके बाद पुजारी उद्धव जी व कुबेर जी को मंदिर प्रांगण में लाये गये। दोपहर 3:33 बजे पर भगवान बदरीनाथ के कपाट बंद कर दिए गये। वहीं भगवान बदरी-विशाल के कपाट बंद होने के बाद लोगों को मंदिर तक जाने की अनुमति नहीं दी जाती है।

इस मौके पर बीकेटीसी अध्यक्ष अजेंद्र अजय ने कहा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रेरणा तथा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के दिशा- निर्देशन में इस यात्रा वर्ष बदरीनाथ- केदारनाथ यात्रा ऐतिहासिक रही है। इस बार सबसे अधिक 38 लाख तीर्थयात्री बदरी- केदार पहुंचे हैं। जिनमें से आज कपाट बंद होने तक अठारह लाख चालीस हजार से अधिक तीर्थयात्री बदरीनाथ धाम पहुंचे है। मुख्य कार्याधिकारी योगेंद्र सिह ने बताया कपाट खुलने की तिथि से 17 नवंबर शुक्रवार देर रात तक 18 लाख 36 हजार 5 19 तीर्थयात्री बदरीनाथ धाम पहुंचे है। ये संख्या पिछले सालों में सबसे अधिक है. कपाट बंद होने की प्रक्रिया 14 नवंबर से शुरू हो गयी थी। इस दिन श्री गणेश जी के कपाट बंद हुए. 15 नवंबर को आदि केदारेश्वर तथा आदि गुरु शंकराचार्य मंदिर के कपाट बंद हुए। 16 नवंबर को खड़गपुस्तक पूजन तथा 17 नवंबर को महालक्ष्मी जी की पूजा कढ़ाई भोग संपन्न हुआ। महाभिषेक के बाद बालभोग लगा। दिन में 11 बजे राजभोग लगा। उसके बाद मंदिर बंद नहीं हुआ। पौने एक बजे अपराह्न शायंकालीन पूजा शुरू हुई. पौने दो बजे रावल ने स्त्री रूप धारण कर लक्ष्मी जी को बदरीनाथ मंदिर गर्भगृह में विराजमान किया। इससे पहले श्री उद्धव जी एवं श्री कुबेर जी मंदिर प्रांगण में विराजमान हुए। सवा दो बजे शायंकालीन भोग तथा शयन आरती संपन्न हुई ढाई बजे से साढ़े तीन बजे तक रावल ने कपाट बंद की रस्म पूरी की। जिसके बाद भगवान बदरी विशाल को ऊन का घृत कंबल ओढ़ाया गया। तीन बजकर तैतीस मिनट पर बदरीनाथ मंदिर गर्भगृह तथा मुख्य सिंह द्वार के कपाट रावल ईश्वर प्रसाद नंबूदरी द्वारा शीतकाल के लिए बंद किये गये।


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