डीएम और विधायक ने की आपदा प्रभावित आराकोट का निरीक्षण! काश्तकारों ने रोते-रोते सुनाया दुखड़ा

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उत्तरकाशी का आपदा प्रभावित क्षेत्र आराकोट का डीएम अभिषेक रूहेला व स्थानीय विधायक दुर्गेश्वर लाल ने स्थलीय निरीक्षण किया। इस दौरान सेब उत्पादकों ने मुलाकात करते हुए अपना दर्द बयां किया। सेब उत्पादकों ने कहा कि आराकोट-चिंवा मोटर मार्ग जगह-जगह बंद होने से उनका अर्ली सेब 20 दिन बाद मंडी पहुंचा, जो कि पेटियों में खराब हो चुका था। अब दूसरी किस्म का सेब भी तुड़ान के लिए तैयार है। लेकिन हल्की बारिश में ही सड़क मार्ग बंद हो रहा है। ऐसे में वह कैसे सेब को मंडी तक पहुंचाएं.डीएम व विधायक के सामने लोगों ने सड़कें बंद होने से उपजी समस्याएं रखी। सेब उत्पादक मनमोहन चौहान, हरीश चौहान, प्रमोद रावत, उदय प्रताप राणा, शूरवीर सिंह, विनोद रावत, सरदार सिंह आदि ने कहा कि क्षेत्र की कोठीगाड़ पट्टी में हर वर्ष लगभग तीन लाख पेटी सेब का उत्पादन होता है। क्षेत्र के लोगों का आजीविका का मुख्य साधन भी सेब बागवानी है। लेकिन पिछले दिनों अतिवृष्टि से आराकोट-चिंवा मोटर मार्ग जगह-जगह बंद रहा। जिसके कारण अर्ली किस्म का सेब 20 दिनों बाद मंडी पहुंचा जो कि पेटियों में ही खराब हो चुका था। जिसके उन्हें औने-पौने दाम ही मिले। काश्तकारों ने कहा कि अब दूसरी किस्म का सेब तुड़ान के लिए तैयार है। लेकिन हल्की बारिश में ही सड़कों के बंद होने का सिलसिला जारी है। ऐसे में अगर फिर से बारिश होती है तो उनकी वर्षों की मेहनत पर पानी फिर जाएगा। काश्तकार बैंकों से लिए गए ऋण भी नहीं चुका पाएंगे। विधायक व डीएम ने संबंधित विभागों को तैयार सेब मंडी तक पहुंचाने की व्यवस्था बनाने के निर्देश दिए हैं। उधर कमल नदी के ऊपर बने पुल के बह जाने से तलडा गांव के काश्तकार अपनी नगदी फसलों को सही समय पर मंडी तक नहीं पहुंचा पा रहे हैं। इससे नगदी फसलें खेतों में ही सड़कर खराब हो रही है. जबकि निजी कार्य के लिए नौगांव आ रहे ग्रामीणों को भी नदी में उतरकर आवाजाही जान-जोखिम में डालनी पड़ रही है। बता दें कि बीते 21 जुलाई की रात पुरोला क्षेत्र में हुई अतिवृष्टि से कमल नदी पर बना तीन दशक पुराना आरसीसी पुल बह गया था। जिससे तलडा गांव के 40 परिवारों की पैदल आवाजाही बंद हो गई है. अब ग्रामीण नदी का जल स्तर कम होने पर जान जोखिम में डालकर नदी पार कर रहे हैं। नगदी फसलों को मोटर मार्ग तक पहुंचाने के लिए ग्रामीण दो किमी की अतिरिक्त दूरी घोड़-खच्चरों के जरिए तय रहे हैं। इससे फसलों के ढुलान का अतिरिक्त खर्च भी उठाना पड़ रहा है।


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