उत्तराखंड में बसंत के मौसम में अलग अलग तरह के फूल खिलते दिखाई देते हैं, जिसमें क्वैराल के फूल भी शामिल हैं, यह फूल सफेद और हल्के बैंगनी रंग के होते हैं जो देखने में बेहद खूबसूरत तो होते ही हैं इसके साथ ही यह आयुर्वेदिक औषधीय गुणों से भरपूर भी होते हैं।
क्वैराल को हिंदी में कचनार भी कहते हैं। यह उत्तराखंड के साथ ही अन्य जगहों में भी पाया जाता है, 1400 मीटर की ऊंचाई में मिलने वाले इस फूल का बॉटनिकल नाम बहुनिया पुपुरिया है। पहाड़ों में क्वैराल की कलियां बसंत को दर्शाती है तो वहीं इनके गुलाबी-सफेद-बैंगनी फूल गर्मी आने की सूचना देते हैं। औषधीय गुणों की बात करें तो इसके पेड़ों की छाल आयुर्वेदिक में काफी ज्यादा इस्तेमाल में लाई जाती है। पहाड़ों में क्वैराल तीन तरीके से इस्तेमाल में लाया जाता है, कुछ लोग इसकी सब्जी बनाकर खाते हैं. कुछ इसकी कलियों को पीसकर दही के साथ मिलाकर रायता बनाते हैं तो वहीं कुछ लोग इसका अचार भी बनाते हैं।

वनस्पति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉ. ललित तिवारी ने बताया कि इसके पेड़ की छाल को पीसकर पाउडर बनाया जाता है जो खून से सम्बंधित बीमारियों को ठीक करता है। यह ब्लड प्योरीफायर का काम करता है। इसके अलावा इसका रायता भी पेट के लिए लाभदायक होता है। यह पेट को साफ रखने और पाचन को ठीक रखने में मदद करता है, इसकी कलियों का स्वाद खाने में मीठा होता है. यह प्रॉस्टेट बीमारी में भी कारगर साबित होता है और साथ ही गले की गोईटर बीमारी में भी लाभदायक है।