प्रदेश में युवाओं पर लाठीचार्ज को लेकर राजनीतिक पारा चढ़ा हुआ है। वहीं आंदोलन कर रहे युवाओं का अपनी मांगों को लेकर विरोध जारी है। उधर राजनीतिक दलों के नेताओं का भी आंदोलित युवाओं को समर्थन देने का सिलसिला जारी है। हालांकि युवाओं ने साफ कर दिया है कि उनका विश्वास प्रशासन और पुलिस पर तो बिल्कुल भी नहीं है। लिहाजा युवा प्रशासन और पुलिस से दूरी बनाते हुए दिखाई दे रहे हैं। प्रतियोगी परीक्षाओं को पारदर्शी बनाने के लिए जांच करवाने की मांग कर रहे युवाओं का गुस्सा सबसे ज्यादा प्रशासन और पुलिस पर दिखाई दे रहा है। दरअसल अपनी मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे युवाओं का सीधा टकराव पुलिस से दिखाई दिया था। इस पूरे आंदोलन की शुरुआत पुलिस के दुर्व्यवहार को लेकर युवाओं ने की थी। लिहाजा प्रशासन और पुलिस की भूमिका इस पूरे आंदोलन में युवाओं के दृष्टिकोण से बेहद नकारात्मक रही है।
सबसे बड़ी बात यह है कि इस आंदोलन को खत्म करवाने के लिए प्रशासन और पुलिस के अधिकारी रणनीतिक रूप से बेहद कमजोर दिखाई दिए हैं। उधर युवाओं से बातचीत के तरीकों को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। दरअसल युवाओं का आरोप है कि प्रशासन और पुलिस के अधिकारी आंदोलन को खत्म करने के लिए उनसे बात करने का जो रवैया अपना रहे हैं वह डराने धमकाने वाला है. युवा अपने भविष्य को लेकर आंदोलन कर रहे हैं और अधिकारी उनके भविष्य को खराब करने की धमकी दे रहे हैं। आंदोलित युवाओं को समर्थन देने के लिए राजनीतिक दलों का भी पहुंचना जारी है। आम आदमी पार्टी से लेकर उत्तराखंड क्रांति दल के नेता भी युवाओं के बीच पहुंचे और उन्हें अपना समर्थन देने की बात कही। लेकिन हकीकत यह है कि केवल युवा ही हैं जो इस आंदोलन में दिन-रात डटे हुए हैं जबकि राजनीतिक दलों के नेता केवल अपनी सुविधा के अनुसार इनके समर्थन के लिए आंदोलन स्थल पर पहुंच रहे हैं। बहरहाल दलों के नेताओं का कहना है कि वह इस आंदोलन को राजनीतिक नहीं बनाना चाहते हैं और इसलिए वे धरना स्थल पर पूर्ण रूप से नहीं पहुंच रहे हैं। लेकिन डिजिटल और आम जनता तक संदेश पहुंचाने के रूप में वे पूरी कोशिश कर रहे हैं कि सरकार पर दबाव बनाकर आंदोलित युवाओं की मांगों को पूरा कराया जाए।