उत्तराखंड हाईकोर्ट ने विधानसभा सचिवालय में हुई अवैध नियुक्तियों के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की। मामले की सुनवाई के बाद मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खण्डपीठ ने राज्य सरकार से चार सप्ताह के भीतर जवाब पेश करने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई के लिए 30 जून की तिथि नियत की है। मामले के अनुसार उत्तराखंड विधानसभा सचिवालय में बैकडोर भर्ती, भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के खिलाफ देहरादून निवासी सामाजिक कार्यकर्ता अभिनव थापर ने जनहित याचिका दायर की थी। उन्होंने याचिका में कहा है कि विधानसभा ने एक जांच समिति बनाकर 2016 के बाद की विधानसभा सचिवालय में हुई भर्तियों को निरस्त कर दिया है। जबकि उससे पहले की नियुक्तियों को निरस्त नहीं किया।
सचिवालय में यह घोटाला 2000 में राज्य बनने से अब तक होता रहा है। इसकी सरकार ने अनदेखी कर रखी है। जनहित याचिका में कोर्ट से प्रार्थना की गई है कि विधानसभा भर्ती में भ्रष्टाचार से नौकरियों को लगाने वाले ताकतवर लोगों के खिलाफ उच्च न्यायालय के सिटिंग जज की निगरानी में जांच कराई जाये। सरकार उनसे सरकारी धन की वसूली कर उनके खिलाफ कार्रवाई करे। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता द्वारा कोर्ट को अवगत कराया गया कि सरकार ने 2003 का शासनादेश जिसमें तदर्थ नियुक्ति पर रोक संविधान के अनुच्छेद 14, 16 व 187 का उल्लंघन, जिसमें हर नागरिक को सरकारी नौकरियों में समान अधिकार व नियमानुसार भर्ती का प्रावधान है और उत्तर प्रदेश विधानसभा की 1974 की सेवा नियमावली तथा उत्तराखंड विधानसभा की 2011 की नियमवलियों का उल्लंघन किया गया है।